Wednesday, May 20

मंडल वाद की प्रमुख व्यवस्थाओं की प्रमुख विशेषता

इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ 1993 सुप्रीम कोर्ट मंडल आयोग मामला के नाम से जाना जाता है के मामले में एक मंडल कमीशन बनाया गया था जिसका कार्य पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए सुझाव देना था कमीशन ने जांच के आधार पर सर्वे किया तथा वर्ष 1980 में अपनी रिपोर्ट सरकार को दे दी केंद्र सरकार ने 13 अगस्त 1980 को कार्यपालिका आदेश जारी करके मंडल आयोग के आधार पर पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी सेवा में 27% स्थानों को आरक्षित कर दिया केंद्र सरकार की सत्ता में परिवर्तन हुआ और नई सरकार ने 13 अगस्त 1991 को पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 27% स्थान आरक्षित करने के लिए एक कार्यपालिका आदेश जारी किया किंतु पूर्व सरकार के द्वारा जारी आदेश में यह परिवर्तन किया कि आरक्षण का आधार आर्थिक होगा और साथ ही साथ 10% स्थान उच्च वर्ग जाति के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित किया गया।

                  उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने 6-3 के बहुमत से यह निर्धारित किया कि 13 अगस्त 1990 का कार्यपालिका आदेश विधिमान्य है किंतु उसे न्यायालय के निर्णय में विहित शर्तों के अनुसार लागू किया जा सकता है न्यायालय ने वर्ष 1991 में जारी किए गए आदेश के उस भाग को जिस में आर्थिक भाग में उच्च जाति के आरक्षण के लिए बंद था असंवैधानिक घोषित कर दिया बहुमत ने निम्नलिखित बिंदुओं पर अपना निर्णय इस प्रकार दिया है।

1. यह भी निर्धारित किया कि अनुच्छेद 14 खंड 4 अनुच्छेद 16 खंड 1 का अपवाद नहीं है बल्कि उसका एक उदाहरण है आरक्षण अनुच्छेद 16 खंड 1 में अनुच्छेद 14 के अधीन प्रतिपादित वर्गीकरण के सिद्धांत के आधार पर भी किया जा सकता है।

2. न्यायालय ने अभि निर्धारित किया कि अनुच्छेद 16 खंड 4 में पिछड़ा वर्ग अनुच्छेद 15 खंड 4 में सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ा वर्ग के समान नहीं है अनुच्छेद 16 खंड 4 में पिछड़े वर्ग में अनुसूचित जाति एससी और अनुसूचित जनजाति  तथा अन्य सभी पिछड़े वर्गों के नागरिक जिस में सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग भी आता है सम्मिलित है।

3. बहुमत ने अपने निर्णय में कहा जात भी एक सामाजिक वर्ग है और यदि वह सामाजिक रूप से पिछड़ा वर्ग है तो उसे अनुच्छेद 16 खंड 4 के प्रयोजनों के लिए पिछड़ा वर्ग माना जाएगा आर्थिक आधार यार निर्धनता पिछड़ेपन की कसौटी नहीं है।

4. पिछड़े वर्गों में से संपन्न लोगों क्रीमी लेयर को निकालकर आरक्षण लागू किए जाएं इस संबंध में देव दर्शन के मामले में दिए गए निर्णय को उलट दिया जिसमें पिछड़े और अधिक पिछड़े वर्गों के लिए किए गए निर्णय को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया था।

5. बहुमत में अभि निर्धारित किया कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% से अधिक नहीं होगी दूरदराज के राज्यों में जहां विशिष्ट परिस्थितियां है वहां विशेष परिस्थितियों में आरक्षण कुछ अधिक हो सकता है।

6. आरक्षण कार्यपालिका आदेश द्वारा लागू किया जा सकता है।

7. प्रोन्नति में आरक्षण लागू नहीं होगा आरक्षण केवल प्रारंभिक बिंदु तक ही सीमित है प्रोन्नति में आरक्षण नहीं किया जा सकता है।

 81 वां संविधान संशोधन अधिनियम 2000 द्वारा अनुच्छेद 16 में एक  नया खंड 4 बी जोड़ा गया  जिसके अनुसार किसी 1 वर्ष में ना भरी गई रिक्तियां जिसे उस वर्षों में आरक्षित किया गया था पृथक कृतियां मानी जाएंगी और ऐसे रिक्तियों को अगले वर्ष या बरसों में 12 जाएगा ऐसी बकाया रिक्तियों को एक पृथक वर्ग माना जाएगा और उन्हें अगले वर्ष या बरसों में पृथक मानकर भरा जाएगा तथा ऐसी रिक्तियों को 50% की सीमा में नहीं जोड़ा जाएगा।

8. मंडल आयोग के निर्णय से संबंधित सभी विवाद उच्चतम न्यायालय में ही उठाए जाएंगे।


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