जांच दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2(G) में परिभाषित है इसके अनुसार जाँच से अभिप्रेत है विचारण से भिन्न ऐसी प्रत्येक जांच जो इस संहिता के अधीन या मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा की जाए।
जांच के अंतर्गत उन सभी कार्यो को सम्मिलित किया गया है जो मजिस्ट्रेट के द्वारा कार्यवाही के दौरान किए जाते हैं जांच का मुख्य उद्देश्य किसी तथ्य की सत्यता का निर्धारण करना है।
विचारण-
दंड प्रक्रिया संहिता में विचारण शब्द की परिभाषा नहीं दी गई है जांच की परिभाषा से स्पष्ट होता है कि जांच विचारण से भिन्न है जांच समाप्त होने के बाद ही विचारण प्रारंभ होता है विचारण का तात्पर्य विधि सम्मत वह न्यायिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के दोषी अथवा निर्दोष होने का विनिश्चय किया जाता है अतः जहां कोई मजिस्ट्रेट या न्यायालय किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के दोषी अथवा निर्दोष होने का विनिश्चय के लिए जांच कार्य संपादित करता है वहां ऐसी जांच को धारा 2(G) के भाव बोध के अंतर्गत जांच नहीं समझा जाएगा वरन उसे सरल एवं शुद्ध रूप से विचारण माना जाएगा तथा वह समस्त कार्यवाहियां जो मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा विचारण के पूर्व की जाती है जांच कहलाती है।
शंभूनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य 1986 पटना के मामले में अवधारित किया गया कि मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान ले लेने के पश्चात जांच प्रारंभ हो जाती है इसके लिए प्रारूपिक आदेश पारित किया जाना आवश्यक नहीं है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (H) में अन्वेषण शब्द को परिभाषित किया गया है इसके अनुसार अन्वेषण के अंतर्गत वे सभी कार्यवाही आती हैं जो साक्ष्य एकत्रित करने के उद्देश्य से किसी पुलिस अधिकारी द्वारा या मजिस्ट्रेट से भिन्न किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है जो मजिस्ट्रेट के द्वारा इस प्रयोजन के लिए प्राधिकृत किया जाता है।
इस प्रकार अन्वेषण के अंतर्गत वे सभी कार्यवाही में आती हैं –
1. पुलिस अधिकारी द्वारा की जाती है या
2. मजिस्ट्रेट से भिन्न किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है जो मजिस्ट्रेट द्वारा इस प्रयोजन के लिए प्राधिकृत किया जाता है।
3. जो इस संहिता के अधीन की जाती है एवं
4. जिनका उद्देश्य साक्ष्य एकत्रित करना होता है।
अन्वेषण न्यायिक कार्यवाही का एक महत्वपूर्ण अंग एवं उसका प्रारंभिक चरण होता है। अन्वेषण पुलिस अधिकारी द्वारा किया जाता है इसका मुख्य उद्देश्य अपराध के तथ्यों का पता लगाना एवं उसकी छानबीन करना है जब किसी व्यक्ति द्वारा पुलिस अधिकारी के समक्ष संज्ञेय अपराध किए जाने की सूचना दी जाती है तो वह उसका तत्काल अन्वेषण कर सकता है और अन्वेषण के दौरान वह किसी भी साक्षी को अपने समक्ष उपस्थित होने तथा अपने द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देने के लिए बाध्य कर सकता है।
इतना ही नहीं वह अन्वेषण के दौरान किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने, किसी स्थान की तलाशी लेने तथा तलाशी में पाए गए सामानों को जप्त करने की शक्ति रखता है। दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 12 में सूचना (इत्तिला) दिए जाने और अन्वेषण किए जाने से संबंधित प्रावधानों को उपबंधित किया गया है।
पुलिस अधिकारी द्वारा अन्वेषण के बारे में उपबंध धारा 155 156 157 एवं 174 में उपस्थित है तथा मजिस्ट्रेट के आदेश से पुलिस अधिकारी द्वारा अन्वेषण के बारे में उपबंध धारा 155 (2), 156 (3) 159 एवं धारा 202 में वर्णित है।
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