Thursday, June 4

हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत विभिन्न वैवाहिक उपचार , विवाह विच्छेद और न्यायिक पृथक्करण के समान आधार तथा विवाह विच्छेद और न्यायिक पृथक्करण में अंतर

हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत चार प्रकार के वैवाहिक अनुतोष का प्रावधान किया गया है –

(1) विवाह की अकृतता (धारा 11, 12)
(2) विवाह विच्छेद (धारा 13, 13-B)
(3) न्यायिक पृथक्करण (धारा 10)
(4) दाम्पत्य अधिकारों का पुनर्स्थापन (धारा 9)

(1)- विवाह की अकृतता (Nullity of Marriage) –अधिनियम की धारा 11 के अनुसार, निम्नलिखित प्रकार से संपन्न विवाह को पक्षकार न्यायालय में आवेदन देकर अकृत और शून्य घोषित करा सकते हैं |

अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात संपन्न विवाह यदि –

A. विवाह के किसी पक्षकार की पूर्व पति या पत्नी के जीवन काल में किया गया है, धारा 5(i)

B. प्रथा मान्यता न दे तब सपिण्ड सम्बन्ध में किया गया विवाह, धारा 5(v)

C. प्रथा मान्यता न दे तब प्रतिसिद्ध नातेदारी में किया गया विवाह, धारा 5(iv)

धारा 12 के अनुसार – अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व या पश्चात –

A. नपुंसकता
B. सहमति की असमर्थता, उन्मत्तता, मानसिक विकृतता के कारण संतानोत्पत्ति में अयोग्यता, धारा 5(iii)
C. कपट द्वारा प्राप्त सहमति
D. विवाह के पूर्व किसी अन्य पुरुष द्वारा गर्भवती होना

उपरोक्त दशाओं में संपन्न विवाह शून्यकरणीय होगा और पीड़ित पक्ष न्यायालय में याचिका देकर विवाह को अकृत घोषित करवा सकता है | परन्तु तीसरे और चौथे आधार की दशा में याचिका एक वर्ष के भीतर प्रस्तुत करना होगा |

(2)- विवाह विच्छेद – अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत 9आधारों पर पति तथा पत्नी दोनों तथा चार आधारों पर केवल पत्नी तथा दो अन्य आधारों पर पति तथा पत्नी दोनों विवाह-विच्छेद की याचिका न्यायालय में प्रस्तुत कर सकते हैं |

पति तथा पत्नी दोनों को प्राप्त आधार –

(1) अपनी पति या पत्नी से भिन्न व्यक्ति के साथ स्वेच्छया मैथुन
(2) क्रूरता
(3) दो वर्ष से अधिक समय तक अभित्याग
(4) धर्म परिवर्तन
(5) असाध्य रूप से विकृतचित्तता या मानसिक विकार
(6) असाध्य कुष्ठ रोग
(7) असाध्य यौन रोग
(8) संसार का परित्याग
(9) लगातार सात वर्षो से गायब रहना जिससे मृत्यु की उपधारणा उत्पन्न हो

यदि उपरोक्त अवबाधाओ से पति या पत्नी में से कोई ग्रसित हो तब व्यथित पक्षकार तलाक़ का आवेदन दे सकता है|

केवल पत्नी को प्राप्त अधिकार –

(1) पति द्वारा द्विविवाह
(2) पति बलात्कार, पशुगमन या गुदामैथुन का दोषी हो
(3) भरण-पोषण की डिक्री पारित होने के एक वर्ष के भीतर सहवास का न होना
(4) स्त्री का विवाह 15 वर्ष की आयु के पहले हुआ हो और 18 वर्ष की आयु के पूर्व उसने विवाह का निराकरण करा लिया हो |

दो अन्य आधार –

(1) न्यायायिक पृथक्करण की डिक्री पारित होने के एक वर्ष से अधिक समय तक सहवास का न होना |
(3) दाम्पत्य अधिकारों का पुनर्स्थापन की डिक्री पारित होने के एक वर्ष से अधिक समय तक पक्षकारो के मध्य सहवास का न होना विवाह विच्छेद का आधार है |
उपरोक्त प्रावधानों के अतिरिक्त धारा 13-B में पति तथा पत्नी पारस्परिक सहमति से विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकते हैं |

(3)- न्यायिक पृथककरण अधिनियम की धारा 10 के अनुसार - जिन आधारो पर तलाक़ की अर्जी प्रस्तुत की जा सकती है उन्ही आधारों पर पति या पत्नी न्यायालय में न्यायिक पृथक्करण का आवेदन दे सकते हैं चाहे विवाह अधिनियम के लागू होने के पूर्व संपन्न हुआ हो या पश्चात | परन्तु पति पत्नी आपस में सहवास कर सकते हैं और सहवास प्रारम्भ होने पर न्यायालय न्यायिक पृथक्करण की डिक्री को विखंडित कर सकता है |

 (4)- दाम्पत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन – अधिनियम की धारा 9 के अनुसार जब कोई पक्षकार बिना किसी प्रतिहेतु के अपना साहचर्य दूसरे पक्षकार से प्रत्याहृत कर लेता है तब व्यथित पक्षकार दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन का आवेदन जिला न्यायालय में प्रस्तुत कर सकता है |
न्यायालय अपना समाधान हो जाने पर दाम्पत्य अधिकार के प्रत्यास्थापन की आज्ञप्ति पारित कर सकेगा |

विवाह विच्छेद और न्यायिक पृथककरण में अंतर –

1. विवाह विच्छेद में पति तथा पत्नी के सम्बन्ध सदैव के लिए समाप्त हो जाते हैं जबकि न्यायिक पृथक्करण में पति पत्नी के सम्बन्ध समाप्त न होकर केवल स्थगित होते हैं |

2. विवाह विच्छेद के बाद पक्षकार पुनः दूसरा विवाह कर सकते हैं जबकि न्यायिक पृथक्करण के दौरान पक्षकार पुनः विवाह नही कर सकते |

3. विवाह विच्छेद के बाद पति पत्नी आपस में सहवास नही कर सकते जबकि न्यायिक पृथक्करण  में पति-पत्नी आपस में सहवास कर सकते हैं और ऐसी दशा में न्यायालय अपनी आज्ञप्ति को विखंडित कर सकता है |

4. विवाह विच्छेद की याचिका पर न्यायालय कुछ आधारों को छोड़कर धारा 13-B के अंतर्गत न्यायिक पृथक्करण की आज्ञप्ति पारित कर सकता है जबकि न्यायिक पृथक्करण के आवेदन पर न्यायालय विवाह विच्छेद की डिक्री पारित नही कर सकता है |

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