Wednesday, June 3

दाम्पत्य अधिकारों के पुनर्स्थापन तथा इसकी संवैधानिकता

हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9 के अंतर्गत दाम्पत्य अधिकारों के पुनर्स्थापन का प्रावधान किया गया है | 
इस धारा के अनुसार –
“जब पति या पत्नी किसी ने युक्तियुक्त प्रतिहेतु के बिना दूसरे से अपना साहचर्य प्रत्याहृत कर लिया है, तब परित्यक्त पक्षकार दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिए याचिका द्वारा आवेदन जिला न्यायालय में कर सकेगा और न्यायालय ऐसी याचिका में किये गये कथनों की सत्यता के बारे में और बात के बारे में आवेदन नामंजूर करने का कोई वैध आधार नही है, अपना समाधान हो जाने पर तद्नुसार  दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिए आज्ञप्ति देगा |”

इस प्रकार धारा 9 के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं
1. पति या पत्नी ने युक्तियुक्त प्रतिहेतु के बिना दूसरे से अपना साहचर्य पृथक कर लिया हो; तथा
2. न्यायालय याचिका में किये गये कथनों से संतुष्ट हो; तथा
3. न्यायालय के पास याचिका नामंजूर करने का कोई आधार नही है |

दाम्पत्य अधिकारों के पुनर्स्थापन में पक्षकार न तो दूसरे पक्षकार से विवाह विच्छेद चाहता है और न ही न्यायिक पृथक्करण चाहता है बल्कि अपने वैध विवाह से उत्पन्न अधिकार और कर्तव्य को उसी रूप में स्थापित करना चाहता है जिसको दूसरे पक्षकार ने अकारण प्रत्याहृत कर लिया है |

याची यदि पत्नी है तो वह भी दाम्पत्य अधिकार के प्रत्यास्थापन में न तो भरण-पोषण और न ही पृथक निवास और न ही विवाह विच्छेद चाहती है |
दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापन की आज्ञप्ति सिविल प्रक्रिया संहिताके आदेश 21, नियम 32 व 33 के अनुसार निष्पादित कराया जा सकेगा |

यदि प्रतिपक्षी न्यायालय के आदेश का अनुपालन एक वर्ष के भीतर नही करता है तब दूसरा पक्षकार धारा 13 (1-A) खण्ड 2 के अंतर्गत विवाह विच्छेद की याचिका प्रस्तुत कर सकता है |

टी0 सरिता बनाम वेंकेटेश्वर के वाद में आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालयने यह निर्णय दिया कि धारा 9 में दिया गया उपचार एक जंगली जीवन तथा बर्बरता से भरा हुआ है जो संविधान के अनुच्छेद 21 का उलंघन करता है, अतः धारा 9 संविधान से असंगत एवं शून्य है |

परन्तु 1986में उच्चतम न्यायालयने सरोज रानी बनाम सुदर्शन कुमार के वाद में धारा 9 को संवैधानिक करार करते हुए यह कहा कि भारत में पति या पत्नी को एक साथ रहने का अधिकार किसी परिनियम या विधि की देन नही है बल्कि यह अधिकार तो विवाह के अवधारणा की नीव है | धारा 9 में प्रदत्त उपचार पति-पत्नी के बीच के सम्बन्ध को किसी अत्याचार से बचाने की दिशा में किया गया रक्षोपाय है अतः धारा 9 में प्रदत्त अनुतोष संविधानके अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं करता और संवैधानिक है |  

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