Monday, June 1

हिन्दू विवाह की आवश्यक शर्ते

हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 एक विधिमान्य विवाह के लिए निम्नलिखित पांच शर्तो को पूरा होना आवश्यक है – विवाह के समय किसी -

(1)- पक्षकार का पूर्व में कोई जीवित पति या पत्नी न हो – यदि विवाह के समय किसी पक्षकार का कोई जीवित पति या पत्नी है तब ऐसी दशा में किया विवाह धारा 17 के अंतर्गत शून्य होगा और भारतीय दंड संहिता की धारा 494 और 495 में अपराध होगा |
जमुनाबाई बनाम अनंत दादा के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि पहली पत्नी के जीवित रहते हुए किया गया दूसरा विवाह अकृत एवं शून्य है |
लिली थामस बनाम भारत संघ, 2000 S.C. के वाद में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पूर्व पति के जीवित रहते पत्नी द्वारा धर्म परिवर्तन द्वारा दूसरा विवाह करना भारतीय दंड संहिता की धारा 494 और 495 को प्रभावहीन नही बनाता | धारा 11 में ऐसे विवाह को शून्य बनाया गया है।

(2)- पक्षकारो की सक्षमता –

A. विवाह के समय कोई भी पक्षकार विकृतचित्तता के कारण सहमति देने में योग्य न हो।
B. कोई पक्षकार किसी मानसिक विकार के कारण संतानोत्पत्ति की क्षमता से वंचित न हो।
C. किसी पक्षकार को बार-बार उन्मत्तता का दौरा न पड़ता हो।

(3)- पक्षकारो की आयु – विवाह के समय वर ने 21 वर्ष तथा वधु ने 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो | इस शर्त का उल्लंघन करके किया गया विवाह वैध होगा परन्तु दण्डनीय भी होगा जिसके लिए धारा 18 के अंतर्गत 2 वर्ष का कठोर कारावास या, एक लाख का जुर्माना या, दोनों का दण्ड दिया जा सकता है।

(4)- प्रतिसिद्ध नातेदारी (Prohibited Relationship) – विवाह के पक्षकार आपस में प्रतिसिद्ध नातेदारी की डिग्रीयों में न आते हो | प्रतिसिद्ध नातेदारी को अधिनियम की धारा 3(g) में बताया गया है, जिसके अंतर्गत निम्नलिखित नातेदारियां प्रतिसिद्ध नातेदारियाँ मानी गयीं हैं –

• एक दूसरे का परम्परागत अग्रपुरुष है, या
• एक दूसरे के परम्परागत अग्रपुरुष या वंशज की पत्नी है, या
• एक दूसरे के भाई की या पिता या माता के भाई की, या पितामह या मातामह या पितामही या मातामही के भाई की पत्नी है, या
• भाई-बहन, चाचा-भतीजी, चाची-भतीजा, या भाई और बहन की या दो भाइयो या दो बहनों की संताने
इसके अलावा धारा 3(g) के स्पष्टीकरण के अनुसार सहोदर, सौतेला या अन्य सगा सम्बन्धी, वैध या अवैध रक्त सम्बन्धी भी प्रतिसिद्ध नातेदारी में आते हैं |
परन्तु यदि ऐसे संबंधो में विवाह को प्रथा द्वारा मान्यता प्रदान किया गया है तब प्रतिसिद्ध नातेदारी में विवाह वैध होगा अन्यथा शून्य।

(5)- सपिण्ड सम्बन्ध – विवाह के पक्षकार आपस में सपिण्ड न हो | सपिण्ड सम्बन्ध को अधिनियम की धारा 3(f) में बताया गया है –

पिता की वंश परम्परा में पिता से पांच पीढ़ी ऊपर तथा माता की वंश परम्परा से तीन पीढ़ी ऊपर के व्यक्तियों की नातेदारी सपिण्ड नातेदारी मानी जायेगी | परन्तु यदि प्रथा मान्यता दे तब सपिण्ड विवाह मान्य होगा अन्यथा विवाह शून्य है तथा धारा 18(2) में एक माह का सादा कारावास या एक हजार जुर्माना या दोनों से दंडनीय है |

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