इस सन्दर्भ में हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 में बतायी गयी है – “हिन्दू विवाह उनमे के पक्षकारो में से किसी के रूढिगत आचारों और संस्कारों के अनुरूप अनुष्ठित किया जा सकेगा |”
डॉ0 एम्0ए0 मुखर्जी बनाम राज्य के वाद में वादी द्वारा चन्द्रमा में सम्मुख अनुष्ठान, काली के मंदिर में जयमाला द्वारा और गुरुग्रन्थ साहिब के समक्ष विवाह किया गया परन्तु वर एवं वधु दोनों की व्यक्तिगत परम्परा न होने के कारण विधिपूर्ण विवाह नही माना गया।
जहाँ ऐसे आचार और संस्कारों के अंतर्गत सप्तपदी है (अर्थात अग्नि के समक्ष वर और वधु को संयुक्ततः सात पद चलना है) वहाँ विवाह पूरा और बाध्यकर तब होता है जबकि सातवाँ पद पूरा हो जाता है।
टिप्पणी – विवाह के शास्त्रिक रीति से अनुष्ठित किये जाने के लिए निम्नलिखित कर्मकाण्ड आवश्यक हैं-
1. कन्यादान और पाणिग्रहण
2. विवाह होम
3. सप्तपदी
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