Tuesday, June 23

विधिमान्य दत्तक की क्या अपेक्षाएं, दत्तक कौन ले सकता है, दत्तक किसे लिया जा सकता है, दत्तक कौन दे सकता है, विधिमान्य दत्तक का क्या प्रभाव होता है।


विधिमान्य दत्तक की अपेक्षाएं – “दत्तक” का अर्थ है, “दूसरे की संतान को अपनी संतान बना लेना”। 
मनु के अनुसार जब किसी पुत्र को उसके माता-पिता किसी किसी पुत्रहीन सजातीय व्यक्ति को जल के साथ दान कर देते हैं तथा वह उस व्यक्ति द्वारा पुत्र के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है तब वह उसका दत्तक पुत्र बन जाता है और दत्तक ग्रहीता उसके दत्तक माता व दत्तक पिता बन जाते हैं।

दत्तक ग्रहण दो उद्देश्य से किया जाता है, प्रथम धार्मिक उद्देश्य व द्वितीय लौकिक उद्देश्य।

 अमरेन्द्र मान सिंह बनाम सनातन सिंहतथा सावनराम बनाम कलावती क्ले वाद में न्यायालय ने दत्तक को धार्मिक तथा लौकिक रूप में स्वीकार किया गया है परन्तु हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 में दत्तक को एक लौकिक कृत्य के रूप में स्वीकार किया गया। दत्तक एक प्राइवेट कृत्य है इस पर सरकार या संस्था का कोई नियंत्रण नही रहता।

दत्तक ग्रहण तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 6में विधिमान्य दत्तक की निम्नलिखित अपेक्षाएं बतायी गयी है –
(i) दत्तक लेने वाला व्यक्ति दत्तक लेने का अधिकार व सामर्थ्य रखता हो; और
(ii) दत्तक देने वाला व्यक्ति दत्तक देने में समर्थ हो; और
(iii) दत्तक व्यक्ति दत्तक लिए जाने योग्य हो; तथा
(iv) दत्तक इस अधिनियम के शर्तो के अनुरूप किया गया हो।

अधिनियम की धारा 5 के अनुसार इस अधिनियम के प्रावधानों से भिन्न रूप में किया गया दत्तक शून्य होगा।

दत्तक कौन ले सकता है ?

हिन्दू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 7 के अंतर्गत हिन्दू पुरुष और धारा 8 के अंतर्गत हिन्दू नारी को दत्तक लेने का सामर्थ्य प्राप्त है।
हिन्दू पुरुष द्वारा दत्तक ग्रहण अधिनियम की धारा 7 के अंतर्गत कोई स्वस्थ चित्त और व्यस्क हिन्दू पुरुष पुत्र या पुत्री का दत्तक ग्रहण कर सकता है, परन्तु यदि दत्तक ग्रहण करते समय उसकी पत्नी जीवित है तब वह अपनी पत्नी की  पूर्व सहमति से दत्तक ग्रहण करेगा जबतक की पत्नी ने अंतिम रूप से संसार का परित्याग न कर दिया हो या वह हिन्दू न रह गयी हो या सक्षम न्यायालय ने उसको चित्तविकृत्त न घोषित कर दिया हो।

हिन्दू नारी द्वारा दत्तक ग्रहण (धारा 8) – अधिनियम की धारा 8के अनुसार कोई हिन्दू नारी जो –
1. स्वस्थचित्त हो ,
2. व्यस्क हो,
3. अविवाहित हो या तलाक़ शुदा हो या विधवा या पति ने संसार का परित्याग कर दिया हो या पति हिन्दू न रह गया हो या सक्षम न्यायालय ने उसे विकृतचित्त घोषित कर दिया हो,
किसी पुत्र या पुत्री को दत्तक लेने का सामर्थ्य रखती है।

दत्तक कौन दे सकता है ?

हिन्दू दत्तक ग्रहण तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 9 के अनुसार विधिमान्य दत्तक पिता, माता तथा संरक्षक के अलावा कोई अन्य व्यक्ति नही दे सकता है। यदि पिता जीवित है तब वह माता की सहमति से अपत्य को दत्तक दे सकता है परन्तु यदि माता संसार का परित्याग कर चुकी है या हिन्दू नही रह गयी है या सक्षम न्यायालय द्वारा विकृत्तचित्त घोषित की जा चुकी है, तब पिता को दत्तक देने में माता की सहमति लेना आवश्यक नही है। पिता की मृत्यु के बाद या संसार त्यागने या हिन्दू न रह जाने या सक्षम न्यायालय द्वारा विकृत्तचित्त घोषित होने पर माता अपत्य को दत्तक दे सकती है। जहां अपत्य के माता-पिता दोनों मर चुके हैं या संसार का परित्याग कर चुके हैं या सक्षम न्यायालय द्वारा उन्हें विकृत्तचित्त ठहरा दिया गया है या अपत्य को त्याग चुके हैं या अपत्य की जनकता ज्ञात नही है वहाँ अपत्य का संरक्षक न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा से उस अपत्य को किसी व्यक्ति को या खुद को दे सकता है। धारा के स्पष्टीकरण के अनुसार माता-पिता के अंतर्गत दत्तक माता-पिता नही आतें। संरक्षक के अंतर्गत अपत्य के शरीर व संपत्ति का संरक्षक आता है। पिता या माता की वसीयत द्वारा नियुक्त संरक्षक या न्यायालय द्वारा नियुक्त संरक्षक आता है।

धनराज जैन बनाम सूरज बाई के वाद में न्यायालय ने कहा कि केवल प्राकृतिक माता ही अपत्य को दत्तक दे सकती है सौतेली माता नही।

दत्तक कौन लिया जा सकता है ?

अधिनियम की धारा 10 के अनुसार निम्नलिखित शर्ते पूरी होने पर कोई व्यक्ति दत्तक के रूप में ग्रहण किया जा सकता है –
(i) वह हिन्दू होना चाहिए,
(ii) वह पहले से दत्तक नही लिया गया हो;
(iii) वह अविवाहित हो, परन्तु यदि प्रथा मान्यता देती है तब विवाहित व्यक्ति भी दत्तक लिया जा सकता है ;
(iv) उसकी आयु 15 वर्ष से कम हो, परन्तु यदि प्रथा मान्यता देती हो तब 15 वर्ष से अधिक आयु वाला व्यक्ति भी दत्तक हो सकता है।

डी0आर0 पाटिल बनाम समगंडा, 1992 बम्बई 189 के वाद में न्यायालय ने कहा कि एक विक्षिप्त व्यक्ति भी उपरोक्त शर्तो के अंतर्गत दत्तक के रूप में ग्रहण किया जा सकता है।

दत्तक ग्रहण का परिणाम या प्रभाव –

एक बार दत्तक का अनुष्ठान संपन्न हो जाने पर उसे समाप्त नही किया जा सकता है। दत्तक देने वाले माता-पिता या संरक्षक या दत्तक लेने वाला व्यक्ति दत्तक को रद्द नहीं करा सकता है और न ही दत्तक पुत्र या पुत्री अपने दत्तक माता-पिता का परित्याग कर सकते हैं। दत्तक के परिणाम के सम्बन्ध में अधिनियम की धारा 12 में निम्न प्रावधान किया गया है –
 दत्तक पुत्र के सम्बन्ध में यह माना जाएगा कि दत्तक की तारीख से वह अपने दत्तक ग्रहीता माता-पिता के सभी प्रयोजनों के लिए पुत्र है तथा दत्तक पुत्र का उसके जन्म के परिवार के साथ समस्त सम्बन्ध दत्तक ग्रहण की तारीख से समाप्त तथा उसका स्थान उसके दत्तक ग्रहीता माता-पिता के परिवार से जुड़ गया है।

 परन्तु-
A- दत्तक पुत्र या पुत्री अपने जन्म के परिवार के साथ वैवाहिक सम्बन्ध नहीं स्थापित कर सकता है। 

B- कोई संपत्ति जो दत्तक पुत्र या पुत्री में दत्तक के समय निहित हो चुकी थी उस पर उसके जन्म से किसी सदस्य का भरण-पोषण का भार यथावत बना रहेगा।

C- जो संपत्ति किसी व्यक्ति में दत्तक ग्रहण से पूर्व निहित हो चुकी है | दत्तक पुत्र या पुत्री किसी व्यक्ति को उस संपत्ति से निर्निहित नहीं कर सकता है।

धारा 12 के तीसरे खण्ड के सम्बन्ध में प्रीवी कौंसिल ने अमरेन्द्र मानसिंह बनाम कलावती के वाद में पूर्व सम्बन्ध का सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसको भारतीय उच्च न्यायालय ने सावन राम बनाम कलावती तथा सीताबाई बनाम रामचंद्रा के वाद में मान्य ठहराया है। इस सिद्धांत के अनुसार विधवा द्वारा दत्तक ग्रहण की दशा में दत्तक उस तिथि को माना जाता है जिस तिथि को विधवा के पति की मृत्यु हुई है, क्योकि उसका पति दत्तक अपत्य का दत्तक पिता होता है।

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