हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 यह स्पष्ट करती है कि इस धारा के प्रावधानों के अधीन रहते हुए कोई हिन्दू अपने जीवन काल के दौरान अपने धर्मज और अधर्मज अपत्यो का और वृद्धो तथा शिथिलांग जनको का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है।
धारा 20(2) के अनुसार कोई धर्मज या अधर्मज बालक अपने अवयस्कता काल में अपने भरण-पोषण के लिए पिता पर दावा कर सकता है।
धारा 20(3) के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने वृद्ध या शिथिलांग माता-पिता या अविवाहित पुत्री का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य होगा यदि वे स्वयं अपने उपार्जनो या संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हों।
इस धारा के अंतर्गत निःसंतान सौतेली माता भी आती हैं।
कृष्णा प्रसाद बनाम जयंती तथा अन्य के वाद में आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि माता-पिता का अपने संतानों का भरण-पोषण करने का पूर्ण दायित्व है। इसे शर्तो से सीमित नही किया जा सकता।
चंद्र किशोर बनाम नानक चंद्र के वाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि अविवाहित पुत्री के भरण-पोषण में उसके दैनिक खर्चो के अलावा विवाह का खर्च भी आता है।
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