Tuesday, June 9

विवाह विच्छेद की परिस्थितिया , हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत क्रूरता और अभित्यजन तथा आन्वयिक अभित्यजन के उदाहरण

हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के अंतर्गत विवाह विच्छेद के सन्दर्भ में प्रावधान किया गया है | विवाह विच्छेद के प्रावधान अधिनियम के पूर्व या पश्चात अनुष्ठापित विवाह पर लागू होता है | धारा 13 में विवाह विच्छेद के सम्बन्ध में निम्नलिखित आधारों का उल्लेख किया गया है –
A. पति तथा पत्नी दोनों को प्राप्त आधार
B. केवल पत्नी को प्राप्त आधार
C. असमाधेय भंग का सिद्धांत 
D. पारस्परिक सहमति से विवाह विच्छेद

(A)- पति तथा पत्नी दोनों को प्राप्त आधार – [धारा 13(i)]
1- जारता या व्यभिचार (Adultery) – जारता से तात्पर्य विवाह संपन्न होने के पश्चात पति व पत्नी द्वारा अपने पति या पत्नी से भिन्न किसी दूसरे व्यक्ति के साथ स्वेच्छया मैथुन करना है |

2- क्रूरता (Cruelty) – हिन्दू विवाह अधिनियम में क्रूरता को में परिभाषित नही किया गया है हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स ने रसेल बनाम रसेल के वाद में क्रूरता को परिभाषित करते हुए कहा कि क्रूरता एक ऐसा आचरण है, जिसके द्वारा जीवन, शरीर, अंग या स्वास्थ्य को शारीरिक या मानसिक चोट पहुचे या चोट पहुचने की संभावना हो | क्रूरता के लिए इच्छा का होना आवश्यक नही है |

हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स ने विलियम्स बनाम विलियम्स के वाद में यह कहा कि क्रूरता किस उद्देश्य से की गयी है यह जानना आवश्यक नही है | इसका समर्थन बम्बई उच्च न्यायालय ने भागवत बनाम भागवत के वाद में किया है |

सयाल बनाम सरला के वाद में न्यायालय ने कहा की मात्र मन में जीवन की संकट की आशंका उत्पन्न होना ही क्रूरता होगा यदि ऐसी आशंका पति या पत्नी के आचरण से उत्पन्न होता है |

क्रूरता दो प्रकार की होती है –

a. शारीरिक क्रूरता
b. मानसिक क्रूरता

a. शारीरिक क्रूरता – हिंसा युक्त आचरण जिससे शरीर, अंग या स्वास्थ्य को ख़तरा उत्पन्न हो शारीरिक क्रूरता कहलाता है | कौशल्या बनाम बैशाली के वाद में पति द्वारा पत्नी को मारना-पीटना शारीरिक क्रूरता माना गया | वही सप्तमी बनाम जगदीशके वाद में पति द्वारा पत्नी को गाली देना तथा मारपीट कर उसके पिता के घर भेज देना शारीरिक क्रूरता माना गया |

b. मानसिक क्रूरता – मानसिक क्रूरता का निर्धारण प्रत्येक मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों से निकाला जाता है | ऐसा कृत्य जिसके द्वारा किसी पक्षकार को मानसिक वेदना उत्पन्न होती हो जिससे उसके स्वास्थ्य पर हानिकर प्रभाव पड़ता है, मानसिक क्रूरता कहलाता है |

दास्ताने बनाम दास्ताने के वाद में पत्नी द्वारा पति को यह व्यंग करना कि, “तुम्हारी वकालत नही चलती तुम्हे अपना प्रमाणपत्र जला देना चाहिए, मै उसका भभूती लगाउंगी”| क्रूरता माना गया |

नीलू कोहली बनाम नवीन कोहली, 2009 S.C. के वाद में पति द्वारा पत्नी को निरंतर अपशब्द कहना मानसिक क्रूरता माना गया |

दीपक कपूर बनाम सुमन कपूर, 2009 S.C. के वाद में पत्नी द्वारा अपने कैरियर को ऊँचा उठाने हेतु बार-बार गर्भपात करवा लेना पति के प्रति मानसिक क्रूरता माना गया |

सुमन सिंह बनाम संजय सिंह S.C. इस मामले में पत्नी (अपीलार्थी) और पति (प्रत्यर्थी) के बीच 26 फ़रवरी, 1999 को हिन्दू रीति रिवाजों के अनुसार विवाह संपन्न हुआ | इस विवाह बंधन से दो पुत्रियाँ हुई प्रत्यर्थी ने विवाह के बाद कुछ घटनाओं के आधार पर 11 जुलाई, 2010 को अपीलार्थी के विरुद्ध विवाह विघटन के लिए परिवार न्यायालय रोहिणी दिल्ली में हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (1)(1-क) के अधीन एक अर्जी फाइल की | प्रत्यर्थी ने क्रूरता के आधार पर उपरोक्त अर्जी फाइल की | अपीलार्थी (पत्नी) ने अपना लिखित कथन फाइल कर इन आरोपों से इंकार किया तथा इसी कार्यवाही में उसने अधिनियम की धारा 9 के अधीन प्रत्यर्थी (पति) के विरुद्ध दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिए भी आवेदन किया | उसने अपनी अर्जी में अन्य बातों के साथ यह भी कथन किया कि वह प्रत्यर्थी ही था जिसने अपने आप को किसी युक्तियुक्त प्रतिहेतु के बिना उसके साहचर्य से अलग कर लिया था | कुटुम्ब न्यायालय ने 14 दिसम्बर, 2012 के आदेश द्वारा प्रत्यर्थी (पति) द्वारा फाइल किया गया अर्जी मंजूर कर लिया और न्यायालय ने यह माना कि प्रत्यर्थी द्वारा अभिकथित आधार अधिनियम की धारा 13 (1) (1-क) के तहत मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आते हैं | अपीलार्थी के विरुद्ध विवाह के विघटन की डिक्री पारित कर दी गयी थी इसलिए अपीलार्थी द्वारा दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापन की इच्छा करते हुए फाइल की गयी अर्जी खारिज कर दी गयी |
अपीलार्थी (पत्नी) ने उक्त आदेश से व्यथित होकर उच्च न्यायालयके समक्ष प्रथम अपील फाइल किया | उच्च न्यायालय ने अपील खारिज कर दिया और विचारण न्यायालय की डिक्री की पुष्टि कर दिया |
अपीलार्थी (पत्नी) ने उच्च न्यायालय के निर्णय से व्यथित होकर विशेष इजाजत लेकर उच्चतम न्यायालय में अपील फाइल की | उच्चतम न्यायालय ने इस अपील को स्वीकार करते हुए निम्न बातें अभिनिर्धारित किया – प्रत्यर्थी द्वारा अपने अर्जी में क्रूरता का प्रथम आधार विवाह के अगले ही दिन अर्थात 27 फरवरी, 1999 को पत्नी के व्यवहार के सम्बन्ध में था | क्रूरता के जिन आधारों का अभिवाक पति ने किया था उसमे से अधिकतम घटनाएं 2006 के पूर्व घटी थी तथा न्यायालय का यह मानना था कि जो घटनाएं 2006 के पूर्व घटी थी उनका क्रूरता के दृष्टान्तो को साबित करने के लिए अवलम्ब नहीं लिया जा सकता है क्योकि उन्हें पक्षकारों के कृत्य द्वारा माफ़ किया समझा जाएगा | जहा तक 2006 के बाद के क्रूरता सम्बन्धी अभिकथनों का सवाल है वे इक्का-दुक्का दृष्टांत होने के कारण उनसे क्रूरता का कृत्य गठित नहीं होता है | इक्क-दुक्का घटनाओं के आधार पर विवाह विच्छेद की इच्छा रखते हुए फाइल की गयी अर्जी, जो फाइल किये गये अर्जी के तारीख से 8 या 10 वर्ष पूर्व घटी थी, ऐसी घटनाओं के घटित होने के 10 वर्ष या उससे अधिक दिनों के पश्चात विवाह विच्छेद की इच्छा करने के लिए अस्तित्वशील वाद हेतुक प्रस्तुत नही हो सकता है | न्यायालय ने अंत में कहा कि प्रत्यर्थी (पति) द्वारा अधिनियम की धारा 13 (1) (1-क) के अधीन विवाह विघटन की इच्छा करते हुए फाइल की गयी अर्जी खारिज किया जाता है इसके परिणामस्वरूप यह अभिनिर्धारित किया जाता है कि पक्षकारों के बीच विवाह अस्तित्वशील रहेगा तथा अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थी के विरुद्ध अधिनियम की धारा 9 के अधीन फाइल की गयी दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापन की अर्जी मंजूर की जाती है |

3- अभित्यजन (Desertion) – अभित्यजन का तात्पर्य एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार का बिना किसी कारण और बिना उसकी सहमती से स्थायी रूप से परित्याग करने से होता है | अभित्यजन एक स्थान मात्र का परित्याग नही होता बल्कि एक हैसियत का परित्याग होता है |

अभित्यजन तीन प्रकार का होता है –
       a- वास्तविक अभित्यजन
       b- आन्वयिक अभित्यजन
       c- जानबूझ कर उपेक्षा करना

 a- वास्तविक अभित्यजन – वास्तविक अभित्यजन के गठन हेतु अभित्यजन की इच्छा और अभित्यजन का तथ्य दोनों का एक साथ होना आवश्यक है | अभित्यजन बिना उचित कारण के और दूसरे पक्षकार की सहमति के बिना होना चाहिए | ऐसा अभित्याग दो वर्षो तक का होना चाहिए |

सनत कुमार अग्रवाल बनाम नंदनी अग्रवाल S.C. के वाद में अवधारित किया गया कि वास्तविक अभित्यजन में तथ्य और इच्छा दोनों का होना एक आवश्यक तत्व है |
चेतनदास बनाम कमला देवी, 2001 S.C. के वाद में पति ने पत्नी पर अभित्यजन का आरोप लगाया तथा पति ने पत्नी पर जारता का आरोप लगाया | न्यायालय ने पति की विवाह विच्छेद की याचिका यह कहकर खारिज कर दिया कि पति स्वयं अपनी गलतियों का लाभ नही प्राप्त कर सकता।

b- आन्वयिक अभित्यजन – आन्वयिक अभित्यजन से स्थान मात्र का परित्याग नही है बल्कि हैसियत का परित्याग है | दाम्पत्य जीवन का प्रत्याहरण करने वाला पक्षकार अभित्यजन का दोषी होता है चाहे वह पत्नी के साथ एक ही घर में क्यों न रहता हो |

हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स ने लाग बनाम लाग के वाद में यह निर्णय दिया कि पति द्वारा ऐसी परिस्थिति पैदा कर देना जिससे विवश होकर पत्नी घर छोड़ दे तो ऐसी दशा में घर छोड़ने वाली पत्नी अभित्यजन की दोषी नही होगी बल्कि घर छुडवाने वाला पति दोषी होगा |

ज्योतिष चन्द्र बनाम मीरा के वाद में पति विवाह के पश्चात पत्नी के प्रति सदा उदासीन रहता था | पति-पत्नी के सम्बन्ध बहुत ही असहज थे | पत्नी ने एकाकीपन से तंग आकर घर छोड़ दिया | न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि पत्नी के वेदनापूर्ण और एकाकी जीवन के लिए पति ही उत्तरदायी है उसने ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर दी थी जिससे कि पत्नी को घर छोड़ने के सिवाय अन्य कोई रास्ता नही बचा था |

वास्तविक अभित्यजन और आन्वयिक अभित्यजन के तत्व एक ही होते हैं  दोनों के ही अंतर्गत अभित्यजन के तथ्य और इच्छा का विद्यमान होना आवश्यक है | दोनों में अंतर मात्र यह है कि वास्तविक अभित्यजन में अभित्यजन करने वाला पक्षकार घर त्याग देता है किन्तु आन्वयिक अभित्यजन में अभित्यजक दूसरे पक्षकार को घर छोड़ने के लिए मजबूर कर देता है |   

3-जानबूझ के उपेक्षा करना – एक पक्षकार दूसरे पक्षकार के प्रति अपने कर्तव्य एवं दायित्व के प्रति उपेक्षापूर्ण आचरण करता है, यदि वह ऐसा लगातार करता है तब इसे अभित्यजन माना जायेगा | कर्तव्य व दायित्व से तात्पर्य जीवन के आवश्यक कर्तव्य व दायित्व से है, जैसे – दाम्पत्य अधिकारों की अवहेलना, भरण-पोषण की अवहेलना |   

4- धर्म परिवर्तन (Apostacy) – यदि पति या पत्नी में से कोई भी धर्म परिवर्तन के कारण हिन्दू नही रह जाता है तब दूसरा पक्षकार इस आधार पर विवाह-विच्छेद करवा सकता है |

5- मानसिक विकार या विकृतचित्तता (Mental Disorder) –यदि विवाह का एक पक्षकार मानसिक रूप से रोग ग्रस्त है या विकृतचित्त है जिसके ठीक होने की संभावना क्षीण हो गयी है, तब दूसरा पक्षकार विवाह-विच्छेद करवा सकता है |

6- उग्र कुष्ठ रोग (Leprosy) – जब विवाह का एक पक्षकार असाध्य कुष्ठ रोग से पीड़ित हो तब दूसरा पक्षकार विवाह-विच्छेद करवा सकता है |

7- यौन रोग (Venereal Disease) – विवाह का एक पक्षकार असाध्य यौन रोग से ग्रसित हो तो दूसरा पक्षकार इस आधार पर विवाह विच्छेद की याचिका प्रस्तुत कर सकता है |

8- संसार का परित्याग (Renunciation of World) – विवाह का कोई पक्षकार जब संसार का परित्याग करके सन्यासी हो जाता है तब दूसरा पक्षकार इस आधार पर विवाह-विच्छेद करवा सकता है |

9- प्रकल्पित मृत्यु (सात वर्ष से लापता होना) (Missing for Seven Years) – जब विवाह के एक पक्षकार के विषय में विगत सात वर्षो से न उसे देखा गया हो न सुना गया हो और न ही उसके बारे में कोई जानकारी हो तब उसके सिविल मृत्यु की उपधारणा कर ली जायेगी तथा दूसरा पक्षकार विवाह-विच्छेद करवा सकता है |

(B)- केवल पत्नी को प्राप्त आधार – [धारा 13(2)] विवाह विच्छेद के सम्बन्ध में केवल पत्नी को चार आधार प्रदान किये गये हैं –
1- पति द्वारा द्विविवाह – इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व संपन्न विवाह की दशा में पति ने दूसरी पत्नी से विवाह कर लिया हो या विवाह के समय उसकी पूर्व पत्नी जीवित थी तब पत्नी विवाह विच्छेद की याचिका प्रस्तुत कर सकती है | परन्तु याचिका प्रस्तुत करते समय दूसरी पत्नी का जीवित होना आवश्यक है |

2- विवाह सम्बन्ध होने के बाद पति बलात्कार, गुदामैथुन, पशुगमन का दोषी हो |

3- पत्नी के पक्ष में भरण-पोषण की डिक्री पारित होने के बाद पत्नी तथा पति के बीच एक वर्ष तक सहवास का न होना |
4- यदि स्त्री का विवाह 15 वर्ष से कम आयु में संपन्न हो गया हो तथा उसने 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने के पूर्व विवाह का निराकरण करा लिया हो |

(C)- असमाधेय विवाह विच्छेद का सिद्धांत – हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1-A) में असमाधेय विवाह विच्छेद के निम्न दो आधार बताये गये हैं –
1. विवाह के दोनों पक्षकारो के मध्य न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित होने के बाद एक वर्ष या उससे अधिक अवधि तक सहवास पुनः प्रारम्भ नही हुआ हो |
2. विवाह के दोनों पक्षकारो के मध्य दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन की आज्ञप्ति पारित होने के एक वर्ष या उससे अधिक अवधि के भीतर सहवास पुनः प्रारम्भ नही हुआ हो |
तब विवाह का कोई भी पक्षकार विवाह-विच्छेद की याचिका न्यायालय में प्रस्तुत कर सकता है |

(D)- पारस्परिक सहमति से विवाह विच्छेद – 1976 के संशोधन में जोड़ी गयी धारा 13-ख पारस्परिक सम्मति से विवाह विच्छेद की बात करता है | धारा 13-D के अनुसार – विवाह के दोनों पक्षकारो द्वारा जिला न्यायालय में इस आधार पर विवाह-विच्छेद की याचिका प्रस्तुत की जा सकती है कि दोनों पक्षकार एक वर्ष से अधिक अवधि से अलग-अलग रह रहे हैं तथा वे आपस में एक साथ नही रह सकतें और दोनों विवाह विच्छेद हेतु सहमत हो गये हैं ऐसा विवाह, अधिनियम के पूर्व या पश्चात संपन्न हुआ हो |

याचिका प्रस्तुतीकरण से 6 माह के बाद तथा 18 माह से पूर्व दोनों पक्षकारो द्वारा दिए गये प्रस्ताव पर यदि याचिका वापस नही ली जाती तब न्यायालय पक्षकारो की सुनवाई तथा जांच आदि करने के बाद विवाह विच्छेद की आज्ञप्ति पारित कर सकता है |

रविशंकर बनाम शारदा के वाद में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने तथा इंद्रबाला बनाम राधेरमण के वाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि आपसी सहमति से विवाह विच्छेद में तलाक के आधार का होना आवश्यक नही है | न्यायालय को मात्र यह देखना होगा कि पक्षकारो की सहमति किसी षड़यंत्र का परिणाम न हो |
उच्चतम न्यायालय ने सुरेष्ठा देवी बनाम ओमप्रकाश के वाद में यह मत व्यक्त किया कि परस्पर सहमति से तलाक़ की याचिका का एक पक्षकार विवाह विच्छेद की डिक्री पारित होने के पूर्व अपनी सहमति वापस ले सकता है बाद में नही |

पारस्परिक सहमति से विवाह विच्छेद के सम्बन्ध में एक वाद में न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह ने कहा की, “ कोई गुलाब बिना कांटे के नही रह सकता परन्तु जब पेड़ पर गुलाब के बजाय केवल कांटे ही पनपे तो उसे तोड़ देना ही श्रेयस्कर होगा | ”

धारा 13-A में की गयी व्यवस्था के अनुसार न्यायालय इस बात के लिए स्वतंत्र है कि विवाह-विच्छेद की याचिका में वह न्यायिक अलगाव की आज्ञप्ति पारित कर दे परन्तु ऐसी याचिका में विवाह विच्छेद का आधार धर्म परिवर्तन, संसार से परित्याग या प्रकल्पित मृत्यु को न बनाया गया हो |

धारा 15 – में तलाक प्राप्त व्यक्ति पुनः विवाह कब कर सकते हैं इस सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है जो निम्न है –
1. जब तलाक़ की आज्ञप्ति के विरुद्ध अपील का कोई प्रावधान नही है; या
2. अपील करने का अधिकार तो है परन्तु नियत समय सीमा में अपील प्रस्तुत नही की गयी है; या
3. अपील को अपील न्यायालय ने ख़ारिज कर दिया है |
उपरोक्त दशा में तलाक़ शुदा व्यक्ति पुनः विवाह कर सकते हैं | 

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