Wednesday, August 19

संपत्ति अंतरण का सम्बन्ध एक जीवित व्यक्ति द्वारा दूसरे जीवित व्यक्ति या व्यक्तियों को किये गये अंतरण से है परन्तु धारा 13 के अंतर्गत अज्ञात व्यक्तियों के पक्ष में भी अंतरण के उपबंध है | अज्ञात व्यक्तियों के पक्ष में एक विधिमान्य अंतरण के आवश्यक तत्वों

सामान्यतया संपत्ति का अंतरण एक अजात (अजन्मे) व्यक्ति को सीधे-सीधे नही किया जा सकता क्योंकि संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 5 के अनुसार संपत्ति का अंतरण ‘जीवित व्यक्तियों’ के बीच ही सीमित है| 
जीवित व्यक्तिओं की परिभाषा के अंतर्गत ‘अजात व्यक्ति’ नही आता | 
अजात व्यक्ति (Unborn Person) से तात्पर्य जो अस्तित्व  में नही है, परन्तु इस धारा के प्रावधानों के अनुसार अजात व्यक्ति ‘के लाभ के लिए’ संपत्ति का अंतरण किया जा सकता है | अजात व्यक्ति के पक्ष में  हित के अंतरण पर कोई वर्जना नही है | संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 20 यह अनुमति देती है कि अजात व्यक्ति के लाभ के लिए हित का सृजन किया जा सकता है जो अपने जन्म पर हित अर्जित करता है |

एफ.एम. देवास गणपति भट्ट बनाम प्रभाकर गणपति भट्ट नामक वाद में दाता ने अपीलार्थी, जो उस समय जीवित था के पक्ष में संपत्ति का दान किया, इस शर्त के साथ कि यदि बाद में उसके भाई को अन्य पुरुष बच्चे पैदा हों, वे भी अपीलार्थी के साथ संपत्ति के संयुक्त धारक होंगे | ऐसी शर्त धारा 13 के उपबंधों से बाधित नही होती | अतः प्रत्यर्थी अपने जन्म पर संपत्ति का हकदार बन गया |

अजात व्यक्ति को अंतरण सीधे-सीधे नही किया जा सकता है, अजात व्यक्ति के लाभ के लिए अंतरण एक न्यास के माध्यम से किया जा सकता है | जब संपत्ति अंतरित की जायेगी तो वह न्यास में निहित हो जायेगी और न्यासी उसके विधिक स्वामी होंगे परन्तु वे सम्पत्ति को अजात व्यक्ति के लाभ के लिए धारित करेंगे |
यह धारा ‘अजात व्यक्ति’ उसे मानती है जो संपत्ति के अंतरण की तिथि को अस्तित्व में न हो; परन्तु वह बच्चा जो गर्भ में है, उसे आंग्ल एवं हिन्दू दोनों विधियों के अनुसार अस्तित्व में माना जाता है | अतः वह बच्चा जो गर्भ में है, वह एक सक्षम अंतरिती हो सकता है और उसे संपत्ति का अंतरण किया जा सकता है |

संपत्ति का अंतरण अजात को सीधे-सीधे नही हो सकता क्योंकि इससे स्वामित्व में प्रसुप्तावस्था उत्पन्न हो जायेगी अर्थात स्वामित्व में अंतराल पैदा हो जाएगा | परन्तु धारा 13 के अधीन जो शर्तें दी गई है उसके अधीन अजात को संपत्ति का अंतरण किया  जा सकता है | वे शर्तें निम्न है-

(1)- पूर्विक हित के अधीन  – इस धारा के प्रावधानों में अजात व्यक्ति को संपत्ति दिए जाने से पूर्व उसी संपत्ति में एक पूर्विक हित का सृजन अवश्य ही किया जाना चाहिए | संपत्ति अंतरण की तिथि और अजात व्यक्ति के अस्तित्व में आने के बीच, किसी व्यक्ति में अवश्य निहित होनी चाहिए | इस तरह अंतरणकर्ता और अजात व्यक्ति के बीच संपत्ति को धारित करने वाला एक जीवित बिचौलिया आवश्यक होना चाहिए जो संपत्ति को न्यासी की भांति अजात व्यक्ति के लाभ के लिए धारित करेगा|

(2)- अजात व्यक्ति को संपूर्ण हित – धारा 13 की दूसरी आवश्यकता यह है कि अजात व्यक्ति को जब हित प्राप्त होगा तो उसे संपूर्ण हित होगा | दूसरे शब्दों में, अजात व्यक्ति को पूर्विक हित की समाप्ति पर सम्पूर्ण अवशिष्ट हित प्राप्त होगा |

सम्पूर्ण अवशिष्ट हित से तात्पर्य है कि पूर्विक हित की समाप्ति पर बची हुई सम्पूर्ण संपत्ति अजात व्यक्ति को प्राप्त होगी | अर्थात धारा के प्रावधानों के अनुसार अजात व्यक्ति के पक्ष में ‘आजीवन हित’ का सृजन नही किया जा सकता है | ‘आजीवन हित’ सीमित हित होता और इसमें अंतरिती पूर्ण स्वामित्व नही प्राप्त करता | जब अजात व्यक्ति में सीमित हित का सृजन किया जाता है तब यह धारा हस्तक्षेप करती है और कहती है कि आप ऐसा नही कर सकते | आपको अजात व्यक्ति को सम्पूर्ण हित देना होगा|

जब संपत्ति का अंतरण उस व्यक्ति को किया जाता है जो अंतरण की तिथि पर जीवित है तो  उसके पक्ष में आजीवन हित का सृजन किया जा सकता है परन्तु अजात व्यक्ति के पक्ष में आजीवन हित का सृजन नही किया जा सकता |

‘क’ अपनी संपत्ति का अंतरण ‘ख’ को अनुक्रमशः अपने और अपनी आशयित पत्नी के जीवन पर्यंत के लिए करता है | यहाँ अपने और अपनी पत्नी के पक्ष में जीवन हित का सृजन संभव है क्योंकि वह और आशयित पत्नी, दोनों अंतरण की तिथि पर जीवित है परन्तु वह अंतरण जो ‘क’ अपने आशयित विवाह के ज्येष्ठ पुत्र के जीवन पर्यंत के लिए करता है, इस धारा के अनुसार प्रभावी नही होगा क्योंकि ऐसा अंतरण अजात पुत्र को आजीवन हित देता है |

इस बिंदु पर आंग्ल विधि और भारतीय विधि में अंतर जान लेना आवश्यक है | भारतीय विधि में अजात व्यक्ति के पक्ष में आजीवन हित का सृजन नहीं किया जा सकता है वहीं आंग्ल विधि में अजात व्यक्ति में आजीवन हित का सृजन किया जा सकता परन्तु ऐसे अजात व्यक्ति की संतानों में आजीवन हित का सृजन नहीं किया जा सकता |
अजात व्यक्ति को सम्पूर्ण हित दिया जाना चाहिए गिरिजेश दत्त बनाम दातादीन का एक महत्वपूर्ण वाद है –
एक सुग्गा नामक व्यक्ति ने अपनी संपत्ति रामकली को जो, उसके भतीजे की लड़की थी, दान किया और रामकली में आजीवन हित का सृजन किया और उसके बाद उसके पुरुष वंशजो को अगर उसके कोई हो और अगर उसको कोई पुरुष वंशज (लड़के) न हो तो रामकली की अजात लड़की को आजीवन हित, परन्तु यदि रामकली की कोई संतान न हो तो, भतीजे दातादीन को, रामकली की मृत्यु निःसंतान हो जाती है | यह निर्धारित किया गया की लड़की के पक्ष में किया गया दान धारा 13 के अंतर्गत अविधिमान्य है क्योंकि लड़की को सीमित हित (आजीवन हित) दिया गया था उसे सम्पूर्ण हित नहीं दिया गया था | भतीजे दातादीन के पक्ष में किया गया दान भी धारा 16 के अंतर्गत अविधिमान्य हो गया क्योंकि धारा 16 कहती है की सम्पति के अंतरण में यदि पूर्विक हित असफल होता है  (धारा 13 एवं धारा 14 के किसी नियम के नाते) तो पश्चातवर्ती हित भी, जो पूर्विक हित की सफलता पर निर्भर है असफल हो जायेगा |

निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है की सम्पति का अंतरण अजात व्यक्ति के लाभ के लिए किया जा सकता है परन्तु निम्नलिखित नियमो के अधीन –

1. अंतरण अजात व्यक्ति के पक्ष में सीधे-सीधे नहीं किया जा सकता है |

2. जब तक कि अजात व्यक्ति अस्तित्व में नहीं आता तबतक उसी संपत्ति में एक जीवित व्यक्ति के पक्ष में पूर्विकहित होना चाहिए |

3. पूर्विक हित की समाप्ति पर संपत्ति में का सम्पूर्ण अवशिष्ट हित अजात व्यक्ति को दिया जाना चाहिए |

4. अधिकतम अवधि जिसके लिए एक अजात व्यक्ति में संपत्ति का निहित होना विलंबित किया जा सकता है वह है उसके अवयस्कता की अवधि | (यह नियम धारा 14 के अनुसार)

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