Monday, August 24

शाश्वतता के विरुद्ध नियम

धारा 14 ‘शाश्वतता के विरुद्ध नियम’ को बताती है | शाश्वतता क्या है ? संपत्ति का ऐसा अंतरण जो उसके पुनः अंतरण को अनिश्चित काल के लिए असंभव बना देता है | ‘शाश्वतता’ को भविष्य में दूरस्थ हितों का सृजन भी कहते  है | एक ऐसी चीज़ को जी संपत्ति के स्वतंत्र संचालन को रोकती है | विधि में घृणित है, सामान्य सम्पदा की विनाशक है, वाणिज्य के लिए बाधा है, शाश्वतता है | शाश्वतता के निर्माण के पीछे के उद्देश्य यह भी है कि लोग अपने परिवार के नाम और स्वाभिमान को ऊँचा रखना चाहते हैं |


शाश्वतता का निर्माण - शाश्वतता का निर्माण दो रूपों में हो सकता है –

(1) संपत्ति के स्वामी से उसके अंतरण के अधिकार को छीन लिया जाये जो संपत्ति की एक अपृथक्करणीय प्रसंगति है, और

(2) भविष्य के दुरस्थ हितो का सृजन करके जैसे एक संपत्ति ‘अ’को (जो अविवाहित है) आजीवन हित के रूप में अंतरित की गई, उसके पश्चात् ‘अ’ के पुत्र ( जो भविष्य में पैदा होगा ) को आजीवन हित दिया गया; और तत्पश्चात् ‘अ’ के पुत्र को आजीवन हित दिया जाये और यह क्रम चलता रहे |

शाश्वतता के विरुद्ध नियम का उद्देश्य – शाश्वतता के विरुद्ध नियम का उद्देश्य है व्यापार-वाणिज्य हेतु, स्वंय की बेहतरी एवं सुधार हेतु,सम्पत्ति का समाज में सक्रिय और स्वतंत्र संचलन सुनिश्चित करना है | संपत्ति का बार-बार व्ययन किया जाना समाज के हित में है | संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि शाश्वतता के विरुद्ध नियम का परिणाम यह है कि संपत्ति का निहित होना अजात व्यक्ति की अवयस्कता की आयु के पश्चात स्थगित नहीं किया जा सकता |

शाश्वतता के विरुद्ध नियम के लिये वयस्कता की आयु प्रत्येक स्थिति में 18 वर्ष ही है |

शाश्वतता अवधि की सीमा – शाश्वतता की अवधि की सीमा से तात्पर्य कितने समय तक सम्पत्ति बंधी रहेगी कि उसका अंतरण नहीं हो सकता | अंतरण की तिथि से और जब तक संपत्ति अन्तिम हिताधिकारी को पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो जाती, के बीच की अवधि शाश्वतता की अवधि होगी |

उदाहारण – ‘क‘ अपनी सम्पत्ति ‘ख’ को जीवनकाल (आजीवनहित ) के लिए और इसके पश्चात् ‘ग’ को जीवन काल के लिए तत्पश्चात ‘ग’ के अजात पुत्र को जब वह 18 वर्ष प्राप्त कर ले अंतरित करता है |

यहाँ ‘ख’ अंतरण की तिथि के बाद 15 वर्ष तक जीवित रहता है, ‘ग’ 25 वर्ष जीवित रहता है और ‘ग’ की मृत्यु पर उसके पुत्र की उम्र 7 वर्ष है | अर्थात पुत्र की संपत्ति अभी 11 वर्षो के बाद प्राप्त होगी | ‘ग’ के पुत्र को 18 वर्ष की वय पर पूर्ण रूप से प्राप्त न हो जाये के बीच की अवधि के अनुसार होगा | अंतरण की तिथि के पश्चात् जिन दो पूर्विक हितो का सृजन किया गया है वे 25 वर्ष बाद समाप्त होते है | अतः शाश्वतता की अवधि 25 वर्ष और 11 वर्ष अर्थात 36 वर्ष होगी | संपत्ति का व्ययन 36 वर्ष तक बंधा रहेगा |

शाश्वतता आंग्ल एवं भारतीय विधि में अंतर – आंग्ल विधि के अनुसार सम्पत्ति का निहित होना, पूर्विक हितो की अवधि (जो जीवित व्यक्तियों में उनके जीवन काल के लिए सृजित किये गए हो ) में 21 वर्ष और जोड़ देने के बाद जो अवधि आती है उसके लिए स्थगित किये जा सकते है |

परन्तु भारतवर्ष में पूर्विक हितों की अवधि में अवयस्कता की अवधि जोड़कर जो अवधि आती है उसके लिए स्थगित की जा सकती है |

दुरस्थतता के निर्धारण के लिए संभावित न कि वास्तविक घटनाओं को ध्यान में रखना – जहाँ संपत्ति के अंतरण के समय इस बात की पूरी सम्भावना बनी हुई है कि ऐसा अंतरण भविष्य में शाश्वतता का निर्माण करेगा , वहां संपत्ति का ऐसा व्ययन (अंतरण ) शून्य होगा भले ही हित के वास्तविक रूप में निहित होते समय शाश्वतता के विरुद्ध नियम का कोई उल्लंघन न होता हो |

शाश्वतता के विरुद्ध नियम के अपवाद – शाश्वतता के विरुद्ध नियम के निम्नलिखित अपवाद है जहाँ शाश्वतता विरुद्ध नियम लागू नहीं होता –

(1)- लोक के लाभ के लिए अंतरण – शाश्वतता के विरुद्ध नियम उन अन्तरणो पर लागू नहीं होंगे जो लोक के फायदे के लिए, सर्वजन के लाभ के लिए हो तो संपत्ति व्यापार वाणिज्य से अलग हो जाती है और सामान्तया इसे अक्षुण्ण रखना अनिवार्य है और इसके उपभोग को उन्हीं उद्दश्यों के लिए अनिश्चितकाल तक सीमित रखा जाये जिसके लिए उसका अंतरण हुआ है | यदि शाश्वतता के विरुद्ध नियम का प्रयोग न्यासों पर किया जाये, तो प्रत्येक न्यास शून्य हो जायेगा और लोकहित के लिए न्यास का निर्माण लगभग असंभव हो जाये l जहाँ एक मुसलमान ने वक्फ-अलल-औलाद निष्पादित किया, सम्पति का व्यवस्थापन परिवार, बच्चो या वंशजो के लाभ के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी और तत्पश्चात पवित्र पूजा स्थल के लिए किया, वहां उच्चतम न्यायालय ने- ट्रस्टीज ऑफ़ साहबजादी औलिया कुलसुम ट्रस्ट बनाम कंट्रोलर ऑफ़ एस्टेट ड्यूटी  में अभिनिर्धारित किया कि यह विधि सम्मत वक्फ है और शाश्वतता के विरुद्ध नियम का उल्लंघन नहीं करता |

(2)- व्यक्तिगत करार -  शाश्वतता के विरुद्ध नियम सम्पति सम्बन्धी विधि की एक शाखा है न कि संविदा विधि की | परिणामतः हम शाश्वतता के विरुद्ध नियम को उन व्यक्तिगत संविदाओं पर लागू नहीं कर सकते जो सम्पति में किसी भी प्रकार के हित का विधिक या साम्यिक सृजन नहीं करती | अतः ऐसी संविदाओं पर शाश्वतता के विरुद्ध नियम नहीं लागू होते | इसीप्रकार इलाहाबाद उच्चन्यायालय की पूर्ण पीठ ने औलाद अली बनाम सैय्यद अली ऑथर नामक वाद में यह अभिनिर्धारित किया कि भूमि के विक्रय से सम्बंधित संविदा न तो शाश्वतता के विरुद्ध नियम के अधीन है और न ही यह अनिश्चितता के आधार पर शून्य है | जहाँ अचल सम्पति से सम्बंधित हक़शुफ़ा की एक प्रसंविदा है, वहां उस पर शाश्वतता के विरुद्ध नियम लागू नहीं होते  है |
एक मंदिर के सेवायत ने करार किया कि ‘क’ के परिवार को पीढ़ी दर पीढ़ी मंदिर में पूजा अर्चना के लिए सेवाओ हेतु पुजारी नियुक्त करेगा और खर्चे तथा पद के पारिश्रमिक की भी व्यवस्था करेगा वहां यह अभिनिर्धारित किया कि ऐसा करार विधिमान्य एवं वैध है और शाश्वतता के विरुद्ध  नियम से प्रभावित नहीं होगा |

(3)-भूमि के साथ-साथ चलने वाली प्रसंविदाएं - भूमि के साथ-साथ चलने वाली प्रसंविदाओं पर भी शाश्वतता के विरुद्ध नियम लागू नहीं होते | इसका कारण यह है कि ऐसी प्रसंविदाएं भूमि से उपाबध्द होती है |

(4)-भार एवं बंधक – भार, भूमि में एक हित का अंतरण नहीं माना जाता l अतः यह शाश्वतता के नियम से प्रभावित नहीं होता | इसी तरह इस नियम को बंधक पर कभी लागू नहीं किया गया | एक हिन्दू के द्वारा किया गया अंतरण शाश्वतता के विरुद्ध नियम के अधीन होगा |
धारा 14 मुस्लिम विधि के नियमो को नही प्रभावित करती है | मुस्लिम विधि शाश्वतता के निर्णय में विश्वास नही करती सिवाय वक्फ (न्यास) के मामलो में | 

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